उत्तर प्रदेश में प्रदूषण नियंत्रण शुल्क में बड़ा बदलाव: उद्योगों पर बढ़ेगी आर्थिक ज़िम्मेदारी
Major Change In Pollution Control Fee In Uttar Pradesh
Major Change In Pollution Control Fee In Uttar Pradesh : उत्तर प्रदेश में अब उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण की एनओसी और सहमति पत्र प्राप्त करने के लिए पहले से अधिक राशि खर्च करनी होगी। राज्य सरकार ने उद्योगों की श्रेणियों के आधार पर शुल्क में ढाई से तीन गुना तक की बढ़ोतरी को मंजूरी दी है। इसमें लाल श्रेणी के उद्योगों पर सबसे अधिक और हरी श्रेणी के उद्योगों पर सबसे कम शुल्क लगाया जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में आयोजित कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की गई। उल्लेखनीय है कि इस प्रकार की बढ़ोतरी वर्ष 2008 के बाद अब पहली बार की गई है।
वार्षिक नवीनीकरण शुल्क में भी बड़ा परिवर्तन
अब उद्योगों को केवल प्रारंभिक शुल्क ही नहीं, बल्कि हर वर्ष उसी के बराबर नवीनीकरण शुल्क भी देना होगा। पहले जहां उद्योगों को प्रारंभिक शुल्क का आधा हिस्सा ही नवीनीकरण के तौर पर देना पड़ता था, वहीं अब पूरे शुल्क का भुगतान अनिवार्य कर दिया गया है। इसके साथ ही प्रत्येक दो वर्ष में 10% तक शुल्क बढ़ाने की अनुमति भी दी गई है। जल और वायु प्रदूषण नियंत्रण से जुड़ी दो प्रमुख नियमावलियों में संशोधन कर नई शुल्क संरचना लागू कर दी गई है।
शुद्धीकरण संयंत्रों के संचालन पर भी प्रभाव
कैबिनेट द्वारा स्वीकृत संशोधन के बाद अब उद्योगों, स्थानीय निकायों और अन्य इकाइयों के लिए शुद्धीकरण संयंत्रों की स्थापना एवं संचालन हेतु भी अधिक शुल्क देना होगा। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से हर वर्ष अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य है, जो अब नई शुल्क दरों के अनुसार जारी होगा।
लाल, नारंगी और हरी श्रेणियों के आधार पर शुल्क निर्धारण
संशोधित नियमों के तहत उद्योगों को तीन श्रेणियों—लाल, नारंगी और हरी—में विभाजित किया गया है। लाल श्रेणी में वे उद्योग शामिल हैं, जो सबसे अधिक प्रदूषण फैलाते हैं, इसलिए उनका शुल्क भी सर्वाधिक निर्धारित किया गया है। नारंगी श्रेणी के उद्योग अपेक्षाकृत कम प्रदूषणकारी हैं, जबकि हरी श्रेणी में सबसे कम प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग आते हैं। सरकार का मानना है कि नई नीति से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वित्तीय स्थिति मजबूत होगी और निगरानी व्यवस्था और अधिक प्रभावी बन सकेगी।
एक हजार करोड़ से अधिक निवेश वाले उद्योगों के लिए नई व्यवस्था
सरकार ने पूंजीगत निवेश के आधार पर उद्योगों की स्लैब प्रणाली में भी बड़ा बदलाव किया है। पहले एक हजार करोड़ से अधिक निवेश वाले उद्योगों के लिए तीन स्लैब लागू थे, जिन्हें अब घटाकर एक कर दिया गया है। अब इस श्रेणी में हरे उद्योगों के लिए पांच लाख, नारंगी उद्योगों के लिए 5.75 लाख और लाल उद्योगों के लिए 6.50 लाख रुपये प्रति वर्ष शुल्क तय किया गया है।
छोटे उद्योगों को भी नए शुल्क देने होंगे
एक करोड़ रुपये से कम निवेश वाले उद्योगों के लिए पहले चार अलग-अलग स्लैब थे, जिन्हें अब मिलाकर एक कर दिया गया है। नए प्रावधानों के तहत इन उद्योगों को भी पूर्व की तुलना में अधिक शुल्क देना होगा।
श्रेणीवार संशोधित शुल्क संरचना
पूंजीगत निवेश | वर्तमान शुल्क (आरंभिक/नवीनीकरण) | नया शुल्क (हरा/नारंगी/लाल)
एक हजार करोड़ से पांच हजार करोड़ तक | 2.50 लाख / 1.25 लाख | 5 लाख / 5.75 लाख / 6.50 लाख
500 करोड़ से एक हजार करोड़ तक | 1.50 लाख / 75 हजार | 1.50 लाख / 1.72 लाख / 1.95 लाख
250 करोड़ से 500 करोड़ तक | 1 लाख / 50 हजार | 1 लाख / 1.15 लाख / 1.30 लाख
50 करोड़ से 250 करोड़ तक | 75 हजार–1 लाख / 35–50 हजार | 75 हजार / 86 हजार / 97 हजार
10 करोड़ से 50 करोड़ तक | 50 हजार / 25 हजार | 50 हजार / 58 हजार / 65 हजार
एक करोड़ से 10 करोड़ तक | 20 हजार / 10 हजार | 20 हजार / 23 हजार / 26 हजार
एक करोड़ से कम | 3 हजार / 1500 | 5 हजार / 7500 / 10 हजार
निष्कर्ष
नई शुल्क व्यवस्था से राज्य में प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था को तकनीकी और मानव संसाधन के स्तर पर सशक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। हालांकि, इससे उद्योगों पर अतिरिक्त आर्थिक भार भी बढ़ेगा, जिसके चलते छोटे और बड़े दोनों ही उद्योगों को नई नीतियों के अनुरूप वित्तीय planning करनी होगी।